वक्फ बनाम ASI, नए कानून से खत्म होगा वक्फ का दावा, हाथ से निकल सकते हैं 256 स्मारक; NDTV ग्राउंड रिपोर्ट में जानें
नई दिल्ली:
वक्फ कानून को लेकर देश में सियासी हलचल और कानूनी बहस तेज हो गई है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई के दौरान केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए 7 दिन का समय दिया गया है, लेकिन कोर्ट ने कानून पर स्टे नहीं दिया. दरअसल इस मामले का का एक और पहलू है, जिस पर ध्यान ज़्यादा नहीं गया है. वो है ऐतिहासिक इमारतों पर वक़्फ़ बोर्डों का दावा, जिसे नए क़ानून में ख़त्म कर दिया गया है. ऐसी करीब 250 संपत्तियां हैं जो एएसआई की है. नए क़ानून पर अमल के बाद ये संपत्तियां एएसआई को लौटाई जाएंगी. एनडीटीवी ने ऐसी इमारतों का जायज़ा लिया, जो अब वक्फ़ एएसआई को सौंपेगा.
256 स्मारकों पर वक्फ का दावा खत्म होने की कगार पर
नए वक्फ संशोधन कानून के लागू होने के बाद ASI के संरक्षित 256 राष्ट्रीय स्मारकों पर वक्फ बोर्ड का दावा खत्म होने तय माना जा रहा है. इनमें दिल्ली के पुराना किला, मोती मस्जिद, उग्रसेन की बावली, हुमायूं का मकबरा, राजस्थान की आमेर जामा मस्जिद, महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र, प्रतापगढ़ फोर्ट और फतेहखेड़ा मस्जिद जैसी ऐतिहासिक इमारतें शामिल हैं. एनडीटीवी की जांच में सामने आया कि इन स्मारकों पर वक्फ बोर्ड और ASI के बीच दशकों से स्वामित्व को लेकर विवाद चल रहा है. नए कानून के तहत इन संपत्तियों को ASI को वापस सौंपा जाएगा.
वक्फ कानून पर ‘सुप्रीम’ सुनवाई के दौरान CJI ने क्या कहा कि अगले आदेश तक संशोधित कानून के तहत नई नियुक्ति न हो. वक्फ की घोषित हो चुकी संपत्ति रद्द नहीं की जाएगी. रजिस्टर्ड वक्फ में कोई बदलाव न हो, हम बस ये चाहते हैं कि दूसरा पक्ष प्रभावित न हो. हम नहीं चाहते कि हालात बदलें. 110 से 120 फाइलें पढ़ना संभव नहीं. सिर्फ पांच बिंदु तय करने होंगे, जिन पर सुनवाई होगी. मुख्य बिंदुओं पर याचिकाकर्ता सहमति बनाएं.

उग्रसेन की बावली: एक उदाहरण
दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास स्थित उग्रसेन की बावली इसका उदाहरण है. इस ऐतिहासिक बावली के पूर्वी हिस्से में प्राचीन संरचना है, जबकि पश्चिमी हिस्से में एक छोटी मस्जिद. इसी आधार पर वक्फ बोर्ड ने इस ASI संरक्षित स्मारक पर दावा ठोका था. इसी तरह, जयपुर की अकबरी मस्जिद को 1951 में संरक्षित इमारत घोषित किया गया था, लेकिन 1965 में इसे वक्फ संपत्ति करार दिया गया. महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र और वाराणसी की धरहरा मस्जिद जैसे स्थलों पर भी दोहरे स्वामित्व का विवाद चल रहा है.

नए कानून का प्रभाव
वक्फ संशोधन कानून के तहत वक्फ बोर्ड को अपनी संपत्तियों के दस्तावेज छह महीने के भीतर एक ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड करने होंगे. जिन संपत्तियों पर ‘वक्फ बाय यूजर’ का दावा है, लेकिन दस्तावेज नहीं होंगे, उन पर वक्फ बोर्ड का अधिकार अपने आप खत्म हो जाएगा. यह प्रावधान इन 256 स्मारकों को ASI के पूर्ण नियंत्रण में लाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.
सियासी और सामाजिक बहस
वक्फ कानून पर सियासी बयानबाजी भी अपने चरम पर है. जहां एक तरफ कुछ पक्ष इसे ऐतिहासिक संपत्तियों को संरक्षित करने की दिशा में जरूरी कदम बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इसे धार्मिक भावनाओं से जोड़कर विरोध किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई इस मामले को और गंभीर बनाती है, क्योंकि इसका असर न केवल इन स्मारकों पर पड़ेगा, बल्कि देश भर में वक्फ और ASI के बीच संपत्ति विवादों के भविष्य पर भी सवाल उठ रहे हैं. एनडीटीवी की यह ग्राउंड रिपोर्ट न केवल इन ऐतिहासिक स्मारकों की स्थिति को उजागर करती है, बल्कि नए कानून के दूरगामी प्रभावों पर भी प्रकाश डालती है. सवाल यह है कि क्या यह कानून स्मारकों को संरक्षित करने में सफल होगा या नई बहस को जन्म देगा?