असम सरकार की 'पुश बैक' नीति के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट ने नहीं सुनी, बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के लोगों को बांग्लादेश भेजने का है आरोप
<p style="text-align: justify;">घुसपैठिया करार देकर लोगों को बांग्लादेश डिपोर्ट करने की असम सरकार की नीति के खिलाफ दाखिल याचिका सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. जजों ने कहा है कि याचिकाकर्ता को इसके लिए गौहाटी हाई कोर्ट जाना चाहिए. याचिका में कहा गया था कि कानूनी प्रक्रियाओं को छोड़ कर असम सरकार ने ‘पुश बैक’ नीति शुरू कर दी है. पुलिस लोगों को हिरासत में ले रही है और उन्हें बॉर्डर के पार खदेड़ दिया जा रहा है.</p>
<p style="text-align: justify;">ऑल बीटीसी माइनोरिटी स्टूडेंट्स यूनियन की याचिका में 4 फरवरी को आए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला दिया गया था. उस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की तरफ से पूरी जांच के बाद विदेशी करार दिए गए लोगों को निर्वासित करने को कहा था. याचिकाकर्ता का कहना था कि इस आदेश की आड़ में असम सरकार ने अंधाधुंध कार्रवाई शुरू कर दी है. जिन लोगों का मामला फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में लंबित है, उन्हें भी डिपोर्ट किया जा रहा है.</p>
<p style="text-align: justify;">जस्टिस संजय करोल और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अवकाशकालीन बेंच ने असम में चल रही कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश से जोड़ कर देखने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की कोई ज़रूरत नहीं है. बेंच ने याचिकाकर्ता के लिए पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े से कहा कि अगर गलत तरीके से लोगों को निर्वासित किया जा रहा है, तो याचिका हाई कोर्ट में दाखिल होनी चाहिए. </p>
<p style="text-align: justify;">वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने एक याचिकाकर्ता की व्यक्तिगत पीड़ा रखी. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता की माँ को बिना उचित प्रक्रिया के अचानक बांग्लादेश भेज दिया गया है. उसे पता नहीं है कि माँ कहां है. सिब्बल ने असम सरकार से जवाब मांगने का अनुरोध किया. कोर्ट ने इससे सहमति जताते हुए उनकी याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई की बात कही.</p>
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