दिव्यांग टीचर्स के साथ बीता ऑरी का बचपन, पहली बार बताया उस स्कूल में क्या सीखा जिसे आजतक नहीं भुला पाए

नई दिल्ली:
ऑरी को कौन नहीं जानता…आज जो सोशल मीडिया पर है और बॉलीवुड में जरा भी दिलचस्पी रखता है वो जानता है कि ऑरी क्या चीज है. ना आप उन्हें एक्टर कह सकते हैं, ना उन्हें सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर कह सकते हैं, ना ही बिजनेसमैन कह सकते हैं क्योंकि वह खुद कहते हैं कि I live and I am a liver. हर पार्टी की जान, बॉलीवुड सेलेब्स के करीबी और अपने अतरंगी फोन कवर्स के लिए पहचाने जाने वाले ऑरी को यूं तो सभी जानते हैं लेकिन फिर भी उनकी जिंदगी की एक ऐसी परत है जो ज्यादातर छिपी रही है. कभी इस बारे में ऑरी से बात ही नहीं की गई. आज हर जगह छाए रहने वाले ऑरी, सेल्फी के लिए पैसे चार्ज करने वाले ऑरी का बचपन कैसा था…उनकी स्कूलिंग कहां हुई और उनके शुरुआती दिन कैसे गुजरे?
भले ही इस बारे में आज तक उन्होंने ना बात की हो लेकिन NDTV की सिद्धी कपूर से खास बातचीत में उन्होंने अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताया. हमारा उनसे सवाल था कि आपने कभी अपने परिवार के बारे में बात नहीं की. अपने बचपन और उस दौर के बारे में कुछ बताए. इस सवाल पर ऑरी ने बताया कि उनकी स्कूलिंग कहां से हुई और कैसे उनकी शरारतों का पता उनकी टीचर को लग जाता था.
ऑरी ने कहा, मैंने अपने शुरुआती साल दो क्रिश्चियन स्कूलों में बिताए, जिनमें Kodaikanal International भी शामिल है – कोयंबटूर के ऊपर धुंधली पहाड़ियों में बना एक बोर्डिंग स्कूल. वहां मेरी परवरिश नेत्रहीन ननों ने की जिन्होंने मुझे गाय का दूध निकालना और टोकरी बुनना जैसे लाइफ स्किल सिखाए. वे मेरी शरारतें नहीं देख सकती थीं, लेकिन किसी तरह, वे हमेशा इसे महसूस कर लेती थीं. डिसिप्लेन सख्त था और मौसम भी कठोर था, लेकिन मैंने सीखा कि भगवान की दया असीम है.
ऑरी से हुई पूरी बात चीत
सवाल- शोबिज में सफल और वायरल होने के लिए कुछ मेन फैक्टर्स क्या हैं?
जवाब- सबसे पहले, अपने लिए मशहूर स्टार्स के दोस्तों का एक ग्रुप बना लें. जितने ज्यादा होंगे, उतना अच्छा होगा. फिर आपको हर उस पार्टी में जाना होगा जिसमें आपको बुलाया भी ना गया हो. तीन घंटे की नींद, प्रेयर और ग्लैमर पर जीना सीखें. बाकी सब जीन्स और किस्मत पर निर्भर करता है.
सवाल- क्या शोहरत और शोबिज कभी भारी पड़ जाते हैं? आप काम और जिंदगी के बीच बैलेंस कैसे बनाते हैं?
मैं काम ना करने के लिए मशहूर हुआ करता था – और पता नहीं कैसे यही मेरा फुल टाइम काम बन गया. अब मेरे पास चलने के लिए रेड कार्पेट हैं, आफ्टर पार्टीज हैं, ब्रंच हैं जो अचानक हेडलाइन्स बन जाते हैं. यह कभी खत्म नहीं होता. हर डीएम एक डिलीवरेबल बन गया है! मैं काम और जिंदगी के बीच बैलेंस नहीं बना पाता – मैं उन्हें तब तक धुंधला कर देता हूं जब तक मुझे पता ही नहीं चलता कि मुझे पे किया जा रहा है या बस प्यार से बर्दाश्त किया जा रहा है. कुछ रातें वे मुझे चेक थमा देते हैं. दूसरी रातें मैं एक गुडी बैग और कनफ्यूजन के अलावा कुछ नहीं लेकर जाता.
सवाल- हमने आपके वेट लॉस स्ट्रगल के बारे में पढ़ा. क्या आपने कभी ओजेम्पिक लिया है? बॉलीवुड के इस पैशन के बारे में आपका क्या कहना है?
मैं कभी ओजेम्पिक नहीं लूंगा. मैं ट्रेडिशनल तरीकों में विश्वास करता हूं: starvation and resentment.