Sports

बाल-बाल बच गए… पहलगाम हमले के चश्मदीद ने आपबीती में सुनाई उस दिन की पूरी कहानी


पहलगाम आतंकी हमले को सबसे करीब से देखने वाले, उस जानलेवा हमले को झेलने वाले कई लोगों की कहानी अभी तक सामने आ चुकी है. अब कर्नाटक के एक परिवार की सामने आई है, जो 22 अप्रैल को बैसरन घुमने गए थे. कर्नाटक के प्रदीप हेगड़े, उनकी पत्नी शोभा हेगड़े और उनका बेटा सिद्धांत 21 अप्रैल को कश्मीर घुमने श्रीनगर पहुंचे थे. 22 की सुबह वो पहलगाम पहुंचे. जहां से उनका परिवार बैसरन घाटी गया. उस दिन को याद करते हुए प्रदीप ने कहा हम बाल-बाल बच गए. प्रदीप हेगड़े ने बताया कि हमारे प्रोग्राम में बैसरन सबसे ऊपर था, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ के नाम से जाना जाता है.
 

NDTV से बातचीत में प्रदीप ने बताया, “हमने 3 घोड़े किराए पर लिए थे. सड़क बहुत खराब थी. बारिश हो रही थी और बहुत कीचड़ और फिसलन थी. हमें चोटी पर पहुंचने में करीब सवा घंटा समय लगा.”

बैसरन में घुड़सवार पर्यटकों को उतारते हैं और बाद में उन्हें वापस नीचे ले जाते हैं. प्रदीप ने बताया, “जब हम अंदर गए तो वहां बहुत भीड़ थी. अंदर जाते ही दाईं ओर जहां से जिपलाइन शुरू होती है, एक खाली जगह थी. हमने सोचा कि हम वहां कुछ तस्वीरें क्लिक करेंगे. हमने वहां करीब एक घंटा बिताया. इसके बाद हमलोग घाटी के उस इलाके में जाने वाले थे, जहां कई साहसिक गतिविधियां आयोजित की जा रही थीं और कुछ स्टॉल भी लगाए गए थे.

Latest and Breaking News on NDTV

प्रदीप ने बताया कि करीब 1.45 बजे, हमने वहां जाने के बारे में सोचा. लेकिन मेरे बेटे ने कहा कि उसे भूख लगी है. हमने उसे मनाने की कोशिश की लेकिन वह अड़ा रहा. इसलिए वहीं पास में लगे फुड स्टॉल की ओर बढ़ गए. हमने मैगी ऑर्डर किया. मेरी पत्नी वहीं करीब 500 मीटर दूर वॉशरूम गई. मैगी खाने के बाद हमलोगों ने चाय ऑर्डर की, तभी गोली की आवाज सुनाई पड़ी .”

उस समय, हमें नहीं पता था कि वे गोलियां थीं. दुकानदार ने बताया कि यह पटाखों की आवाज हो सकती है. हमें लगा कि वे जानवरों को डराने के लिए पटाखे फोड़ रहे हैं.

प्रदीप ने कहा, “लगभग 15-20 सेकंड बाद हमने दो लोगों को बड़ी बंदूकों के साथ देखा. वे लगातार गोलियां चला रहे थे.” उन्होंने कहा कि एक आतंकवादी घाटी के निचले हिस्से की ओर चला गया, जबकि दूसरा उनकी ओर बढ़ रहा था.

प्रदीप ने कहा, “शुरू में हमें समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है. हम वहीं लेट गए. इस समय मेरी पत्नी ने मेरा बैग लेने के बारे में सोचा, जो टेबल पर था. उसमें हमारे आईडी और फोन थे. वह बैग लेने के लिए उठी और उसे लगा कि उसके दाहिने कान के पास से कुछ गुजरा है. यह गोली थी.” 

Latest and Breaking News on NDTV

शुभा ने NDTV से कहा, “अब मैं सोच रही हूं कि मैं क्यों उठी. उस समय हमें कुछ भी पता नहीं था. जब मैं बैग लेने के लिए नीचे झुकी, तो मेरे बालों पर कुछ लगा. मुझे नहीं लगा कि यह गोली है. लेकिन बल के कारण मैं मुड़ी और महसूस किया कि गोली फर्श पर लगी है. भगवान ने मुझे बचा लिया.” 

प्रदीप ने कहा कि उस समय उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि यह आतंकवादी हमला था. “तभी घुड़सवारों ने चिल्लाते हुए लोगों को गेट की ओर भागने को कहा. मुझे 100 प्रतिशत यकीन था कि हम मर जाएंगे, लेकिन मेरी पत्नी कहती रही, ‘कुछ नहीं होगा’. इस आत्मविश्वास ने हमें बचा लिया.”

प्रदीप ने कहा कि गेट पर भीड़ थी क्योंकि हर कोई बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था. मेरा बेटा गिर गया, किसी तरह हम बाहर निकले. बाहर निकलने के बाद, हमें नहीं पता था कि किस रास्ते से जाना है. किसी ने हमें रास्ता दिखाया. हम कई बार गिरे, हम 2-3 किलोमीटर तक भागे.

फिर हमने देखा कि हमारा घोड़ा वाला एक पेड़ के पीछे छिपा हुआ है. हमने उसे हमें बचाने के लिए कहा, और वह हमारे साथ आया. मेरे बेटे ने आखिरकार कहा कि वह अब और नहीं भाग सकता. आगे चलकर हमलोगों ने घोड़ा लिया और फिर नीचे आए.




Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *