वक्फ कानून पर ‘सुप्रीम’ बहस डे-2 : CJI के कड़े सवाल, मुस्लिम पक्षकारों की दलीलें ; अब तक क्या-क्या हुआ? जानिए एक-एक अपडेट

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार से ‘वक्फ बाई यूजर’ के मुद्दे पर जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान हो रही हिंसा बहुत व्यथित करने वाली है.मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने अपनी दलीलों में संविधान के मौलिक अधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांतों का हवाला देते हुए अदालत से इसे रद्द करने की मांग की. कपिल सिब्बल, अभिषेक सिंघवी सहित कई दिग्गजों ने अदालत में मुस्लिम पक्ष की तरफ से दलीलें दी. सुप्रीम कोर्ट आज भी इस मसले पर सुनवाई करेगा.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘अदालत इस समय उस कानून पर सुनवाई कर रही है, जिसे व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श के बाद लाया गया है.
हाइलाइट्स
- कपिल सिब्बल ने कहा कि 20 करोड़ लोगों के अधिकारों को इसके आधार पर हड़पा जा सकता है.
- सिब्बल ने कहा कि पहले कोई लिमिटेशन नहीं थी. इनमें से कई वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण किया गया था.
- वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि यह कानून इस्लाम धर्म की अंदरूनी व्यवस्था के खिलाफ है.
- अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि 8 लाख में से 4 वक्फ हैं, जो उपयोगकर्ता के द्वारा हैं. उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जताई कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन के बाद इन संपत्तियों पर खतरा उत्पन्न हो गया है.
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘अदालत इस समय उस कानून पर सुनवाई कर रही है, जिसे व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श के बाद लाया गया है.
- CJI संजीव खन्ना ने कहा कि एक बात जो बहुत व्यथित करने वाली है, वह है यहां हो रही हिंसा. अगर मामला यहां लंबित है तो ऐसा नहीं होना चाहिए.
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से भी तीखे सवाल पूछे. सीजेआई ने एसजी तुषार मेहता से कहा, वक्फ बाई यूजर क्यों हटाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 14,15वीं सदी की अधिकांश मस्जिदों में बिक्री विलेख नहीं होगा. अधिकांश मस्जिदें वक्फ बाई यूजर होंगी.
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन अधिनियम पर अपनी आपत्ति जताते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक समुदायों को अपने धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है. उन्होंने अपने तर्क में निम्नलिखित बिंदु उठाए:
धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन: सिब्बल ने सवाल किया कि सरकार कैसे तय कर सकती है कि वक्फ केवल वही लोग बना सकते हैं जो पिछले पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहे हैं? यह धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है.
इस्लामी उत्तराधिकार कानून: उन्होंने तर्क दिया कि इस्लाम में उत्तराधिकार मृत्यु के बाद मिलता है, लेकिन यह कानून उससे पहले ही हस्तक्षेप करता है, जो अनुचित है.
वक्फ संपत्ति की मान्यता: सिब्बल ने अधिनियम की धारा 3(सी) का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत सरकारी संपत्ति को वक्फ के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी, जो पहले से वक्फ घोषित थी. यह वक्फ की मौजूदा स्थिति को बदलने का प्रयास है.
संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन: उन्होंने अनुच्छेद 25 और 26 का हवाला देते हुए कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम संविधान के इन प्रावधानों का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के अधिकार की गारंटी देते हैं.
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. इस मामले में अब तक 72 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख याचिकाकर्ता हैं.
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी दलीलें दीं. उन्होंने कहा कि हमने सुना है कि संसद की जमीन भी वक्फ की है. वहीं, CJI खन्ना ने जवाब दिया, “हम यह नहीं कह रहे कि सभी वक्फ गलत तरीके से पंजीकृत हैं. लेकिन कुछ चिंताएं हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि इस मामले की सुनवाई हाई कोर्ट को सौंपी जा सकती है. सिब्बल की दलीलों पर CJI ने कहा, “ऐसे कितने मामले होंगे? मेरी समझ से व्याख्या आपके पक्ष में है. अगर किसी संपत्ति को प्राचीन स्मारक घोषित करने से पहले वक्फ घोषित किया गया था, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा.”
AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी: ओवैसी ने अधिनियम को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत वक्फ को दी गई सुरक्षा को खत्म कर देता है
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB): बोर्ड ने अधिनियम को मुस्लिम अल्पसंख्यकों की धार्मिक पहचान और प्रथाओं पर आघात करने वाला बताया है.
जमीयत उलमा-ए-हिंद: संगठन ने अधिनियम के क्रियान्वयन को स्थगित करने के लिए अंतरिम राहत मांगी है.
DMK: पार्टी ने अधिनियम को तमिलनाडु में लगभग 50 लाख मुसलमानों और देश के अन्य हिस्सों में 20 करोड़ मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला बताया है.
कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद: जावेद ने अधिनियम को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभाव करने वाला बताया है।