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वक्‍फ पर सुप्रीम सुनवाई LIVE: कपिल सिब्बल की कोर्ट में तीखी दलीलें, जानें क्या कुछ चल रहा है




नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट, वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. CJI बी आर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के विनोद के चंद्रन की बेंच सुनवाई कर रही है. सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा कि बेंच ने पहले तीन मुद्दे उठाए थे ⁠स्टे के लिए. हमने इन तीनों पर जवाब दाखिल किया था. लेकिन अब लिखित दलीलों में और भी मुद्दे शामिल हो गए हैं. सिर्फ तीन मुद्दों तक सुनवाई सीमित हो. कपिल सिब्बल ने इसका विरोध किया, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि शुरुआत में तीन बिंदु तय किए गए. हमने तीन पर जवाब दिए. लेकिन पक्षकारों ने इन तीन मुद्दों से भी अलग मुद्दों का जिक्र किया है. कोर्ट सिर्फ तीन हो मुद्दों पर फोकस रखे. कोर्ट की सुनवाई की अहम बातें-

मदिंरों की तरह मस्जिदों में 2000-3000 करोड़ चंदे में नहीं आते…

  • कपिल सिब्बल :  विरोध करते हुए कहा कि हम तो सभी मुद्दों पर दलील रखेंगे. मदिंरों की तरह मस्जिदों में 2000-3000 करोड़ चंदे में नहीं आते. वे कहते हैं, पिछले अधिनियम में पंजीकरण की आवश्यकता थी और क्योंकि आपने पंजीकरण नहीं कराया- इसे वक्फ नहीं माना जाएगा. ⁠कई 100, 200 और 500 साल पहले बनाए गए थे.
  • CJI: क्या पंजीकरण की आवश्यकता है? इस पर सिब्बल ने कहा कि यह था, लेकिन पंजीकरण न कराने पर कोई परिणाम नहीं था. CJIने कहा कि आपको A, B, C, D से शुरू करना होगा, क्या पंजीकरण अनिवार्य था?
  • कपिल सिब्बल :  ‘करेगा’ का इस्तेमाल किया गया था.
  • CJI : केवल इसलिए कि इसमें ‘करेगा’ का इस्तेमाल किया गया है, यह अनिवार्य नहीं है जब तक कि परिणाम प्रदान न किए जाएं.
  • सिब्बल : परिणाम नहीं था वक्फ की प्रकृति बदल जाएगी- कि इसे वक्फ नहीं माना जाएगा.

वक्फ बाय यूजर के लिए पंजीकरण आवश्यक नहीं था? 

  • CJI : 2013 में वक्फ के पंजीकरण का प्रावधान था. गैर-अनुपालन के लिए मुतवली को हटाने के अलावा कोई परिणाम नहीं दिया गया था.
  • सिब्बल : वक्फ के पंजीकरण के लिए जिम्मेदार है; वक्फ का चरित्र नहीं बदलेगा. यह, 2025 का अधिनियम चरित्र को बदल देता है.
  • सीजेआई : हम इसे रिकॉर्ड पर ले रहे हैं. 2013 के दौरान वक्फ बाय यूजर के लिए पंजीकरण आवश्यक नहीं था? क्या यह स्वीकार्य था?
  • ⁠सिब्बल :  हां, यह स्थापित प्रथा है. वक्फ बाय यूजर  को पंजीकृत करने की आवश्यकता नहीं है. ⁠
  • CJI: कहा कि 2013 से पहले  वक्फ बाय यूजर को पंजीकृत करने की आवश्यकता नहीं थी, ⁠हम रिकॉर्ड पर ले रहे हैं.

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम आदेश पारित करने के लिए सुनवाई को तीन चिह्नित मुद्दों तक सीमित रखा जाए. इन मुद्दों में ‘अदालत द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड’ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने का अधिकार भी शामिल है. भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ से केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आग्रह किया कि वह पहले की पीठ द्वारा निर्धारित कार्यवाही तक ही सीमित रहें.

CJI ने पूछा कि क्या इससे धर्म का पालन करने पर रोक लग जाती है?

  • CJI : 1923 के बाद, यह जरूरी था?
  • सिब्बल : कोई दो तारीखें नहीं 1904 और 1958- प्राचीन स्मारक अधिनियम संरक्षण अधिनियम- दोनों प्राचीन स्मारकों से संबंधित हैं- जब 1904 अधिनियम आया- अधिनियम ने हस्तक्षेप नहीं किया- उदाहरण के लिए, जामा मस्जिद- सरकार कह सकती है कि वह इसे संरक्षित कर सकती है और इसलिए अधिसूचित कर सकती है कि इसे प्राचीन स्मारक घोषित किया जा सकता है. कोई स्वामित्व हस्तांतरित नहीं किया गया.
  • CJI : क्या इससे धर्म का पालन करने पर रोक लग जाती है? क्या आपको वहां जाकर प्रार्थना करने से रोका जाता है. मैंने हाल ही खजुराहो का दौरा किया. पुरातत्व के संरक्षण में अभी भी वहां मंदिर है और सभी भक्त वहां जाकर प्रार्थना कर सकते हैं.
  • सिब्बल: यह प्रावधान अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है. संशोधन से वक्फ को सरकार ने अपने पास से लिया है. इसके बाद यदि कोई अनुसूचित जनजाति मुस्लिम है और वक्फ बनाना चाहता है… तो ऐसी संपत्ति वक्फ नहीं है और यह सीधे तौर पर अधिग्रहण है और अनुच्छेद 25 के तहत अधिकार छीन लिया जाता है.
  • CJI : रिकॉर्ड किया
  • सिब्बल : दलील दी  कि पहले पंजीकरण अनिवार्य नहीं था, यह स्वैच्छिक था. यदि पिछले अधिनियम के तहत पंजीकरण नहीं किया गया था, तो परिणाम प्रदान नहीं किए गए थे. 2013 में, वक्फ के पंजीकरण के लिए एक प्रावधान था, मुतवल्ली को हटाने के अलावा गैर-अनुपालन के लिए कोई परिणाम प्रदान नहीं किया गया था. यह  वक्फ बाय यूजर  है – 1913 से 2013 तक. हालांकि वक्फ के पंजीकरण के लिए एक प्रावधान था. मुतवल्ली को हटाने के अलावा गैर-अनुपालन के लिए कोई परिणाम नहीं थे.

वक्फ के छीन लिए जाने के बाद वे वहां जाकर प्रार्थना नहीं कर सकते…

  • CJI: सिब्बल की दलील दर्ज की कि धर्म का पालन करने का अधिकार प्रभावित होता है और वक्फ के छीन लिए जाने के बाद वे वहां जाकर प्रार्थना नहीं कर सकते. प्रार्थना जारी रखना खतरे में पड़ जाता है, इसलिए धर्म का अधिकार प्रभावित होता है.
  • सिब्बल: एक प्रावधान के बारे में तर्क दिया है जिसमें कहा गया है कि वक्फ के लिए संपत्ति दान करने के योग्य होने से पहले एक मुसलमान को कम से कम पांच साल तक इस्लाम का पालन करना चाहिए. पहले बोर्ड के सदस्य मुस्लिम होते थे. अब गैर मुस्लिम नामांकित सदस्य हैं.
  • CJI: कानून के लिए संवैधानिकता की धारणा है और जब तक कोई स्पष्ट मामला सामने न आए, अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं, हमें कॉलेज से यही सिखाया गया है.
  • सिब्बल :  कोई न्यायिक प्रक्रिया नहीं है और फिर आप वक्फ को अदालत में जाने और कलेक्टर के फैसले को चुनौती देने के लिए मजबूर करते हैं और जब तक फैसला आता है, तब तक संपत्ति वक्फ नहीं रह जाती है.

एक मुद्दा ‘अदालत द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड’ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने के अधिकार का है. याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है, जहां उनका तर्क है कि पदेन सदस्यों को छोड़कर केवल मुसलमानों को ही इसमें काम करना चाहिए. तीसरा मुद्दा एक प्रावधान से संबंधित है, जिसमें कहा गया है कि जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करते हैं कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा. सुनवाई जारी है. सिब्बल ने दलीलें पेश करना शुरू किया और मामले की पृष्ठभूमि का उल्लेख किया. गत 17 अप्रैल को, केंद्र ने शीर्ष अदालत को आश्वासन दिया था कि वह 5 मई तक न तो ‘वक्फ बाई यूजर’ समेत वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करेगा, न ही केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्डों में कोई नियुक्ति करेगा.

  • सुप्रीम कोर्ट :  मामला लंबित रहने के दौरान संपत्ति की स्थिति 3(सी) के तहत बदल जाती है और वक्फ का कब्जा खत्म हो जाता है.
  • सिब्बल : हां, जांच शुरू होने से पहले यह वक्फ नहीं रह जाती.
  • CJI गवई की सिब्बल से महत्वपूर्ण मौखिक टिप्पणी: संसद द्वारा पारित कानून के लिए संवैधानिकता की धारणा होती है और जब तक कोई स्पष्ट मामला नहीं बनता है, तब तक अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. हमें कॉलेज से यही सिखाया गया है. रोक का आदेश ग प्राप्त करने के लिए आपको एक मजबूत मामला बनाना होगा. खासकर आज के..वर्तमान संदर्भ में. ⁠हमें और कुछ कहने की जरूरत नहीं है.
  • सिब्बल :  मैं सरकार को क्यों दिखाऊं कि मैं एक मुसलमान हूं. इसका फैसला कौन करेगा और मैं 5 साल तक क्यों इंतजार करूं. यह अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन है.
  • सिब्बल : अब वक्फ बाय यूजर को हटा दिया गया है. इसे कभी नहीं हटाया जा सकता. यह ईश्वर को समर्पित है, यह कभी खत्म नहीं हो सकता. अब यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि केवल वही वक्फ बाय यूजर बचेगा जो रजिस्टर्ड है.
  • सिब्बल : एक अन्य प्रावधान लाया गया है, वक्फ करने वाले का नाम और पता, वक्फ करने का तरीका और वक्फ की तारीख मांगी गई है, लोगों के पास यह कैसे होगा?  200 साल पहले बनाए गए वक्फ मौजूद हैं और अगर वे यह नहीं देते हैं तो मुतवल्ली को 6 महीने के लिए जेल जाना पड़ेगा. कानून की यह धारा अधिकारों का हनन करती है, यह अन्यायपूर्ण और मनमाना है और अधिकारों का उल्लंघन है.
  • सिब्बल : ASI मामले में संभल की जामा मस्जिद भी शामिल है. 1954 में पंजीकरण अनिवार्य किया गया था. वक्फ का पंजीकरण अनिवार्य किया गया था, लेकिन पंजीकरण न कराने पर कोई परिणाम नहीं हुआ.  एक इंटरेस्टिंग बात है. ASI की वेबसाइट देखिए. जैसे ही संरक्षित हुआ, वक्फ स्टेटस गया. इसमें संभल की जामा मस्जिद भी शामिल है. ये बहुत परेशान करने वाला है.

कपिल सिब्बल ने कहा कि 3(डी) और ई धारा के रूप में विधेयक में प्रसारित किया गया था और मतदान से पहले संसद में शामिल किया गया था. यह जेपीसी के समक्ष भी नहीं था, कोई चर्चा नहीं हुई.

कोर्ट ने कहा कि संसद से पहले भी इस पर चर्चा नहीं हुई? सिब्बल बोले कि नहीं जब अंतिम विधेयक पारित हुआ तो उन्होंने संशोधन पेश किया. स्पीकर नियमों में संशोधन कर सकते हैं. ⁠आप मतदान से ठीक पहले नियमों को निलंबित कर देते हैं और इसे पेश करते हैं. यह परेशान करने वाला है, हम दुर्भावना के आधार पर कानून को चुनौती नहीं दे सकते.

SG – उनका बयान दर्ज करें कि इस पर संसद में चर्चा नहीं हुई 

SC – हमने दर्ज किया है.

SG – अगर इससे वैधता प्रभावित होती है तो मैं जवाब दूंगा.

  •  सिब्बल : कोर्ट को बताया कि  एक दिलचस्प बात इस एक्ट मे है जो मैं बताना चाहता हूं.. इसे हमने एएसआई की साइट से ली है, जैसे ही यह ASI लिस्ट में आती है, यह वक्फ का चरित्र खो देती है. इसमें जामा मस्जिद संभल भी शामिल है. यह इस कानून के प्रभाव की सीमा है. बहुत परेशान करने वाली बात है. इस कानून के सेक्शन 3(D) और सेक्शन E को संसद मे वोटिंग से पहले शामिल किया गया था. यह सेक्शन  JPC के सामने नहीं था, कोई चर्चा भी नहीं हुई थी.
  • सुप्रीम कोर्ट: संसद मे वोटिंग से पहले क्या इस पर चर्चा नहीं हुई?
  • सिब्बल :  कोर्ट को बताया कि नहीं हुई थी जब अंतिम विधेयक पारित हुआ तो उन्होंने संशोधन पेश किया. स्पीकर नियमों में संशोधन कर सकते हैं. वोटिंग से ठीक पहले नियमों को सस्पेंड कर दियe जाता हैं और इसे पेश कर दिया जाता है, यह परेशान करने वाला है.

सिब्बल के इस बयान पर सॉलिसिटर जनरल ने आपत्ति जताई और कोर्ट से कहा कि सिब्बल का बयान रिकॉर्ड पर लिया जाए. कोर्ट ने सिब्बल का बयान रिकॉर्ड पर लिया. सिब्बल ने इसे समुदाय के अधिकार का थोक अधिग्रहण बताया और कहा कि अब अधिकार कलेक्टर के पास है कलेक्टर कौन से सर्वेक्षण करेंगे? जब कलेक्टर अपनी रिपोर्ट में उल्लेख करता है कि संपत्ति विवाद में है या सरकारी संपत्ति है तो वक्फ पंजीकृत नहीं होगा. इसलिए अगर कोई विवाद उठाता है तो वक्फ पंजीकृत नहीं हो सकता. इसे समुदाय के अधिकार का थोक अधिग्रहण कहा जाता है.

  • सिब्बल : जब तक यह पंजीकृत नहीं हो जाता, मैं मुकदमा भी दायर नहीं कर सकता. मेरा मुकदमा करने का अधिकार भी छीन लिया गया है. यह घोर उल्लंघन है.
  • CJI : पहले के अधिनियमों में भी पंजीकरण का प्रावधान था. इसलिए इस अधिनियम से पहले पंजीकृत सभी वक्फ इस प्रावधान से प्रभावित नहीं होंगे. वक्फ जिनका पंजीकरण होना जरूरी था और नहीं हुआ .
  • सिब्बल :अगर कोई विवाद हुआ तो क्या होगा? जब तक प्रॉपर्टी रजिस्टर्ड नहीं हो जाती  तब तक मैं मुकदमा भी दायर नहीं कर सकता. मेरा मुकदमा दायर करने का अधिकार भी छीन लिया गया है. यह घोर उल्लंघन है.
  • सुप्रीम कोर्ट : पहले के अधिनियमों में भी रजिस्ट्रेशन का प्रावधान था. इसलिए इस अधिनियम से पहले रजिस्टर्ड सभी वक्फ इससे प्रभावित नहीं होंगे.
  • सिब्बल : वक्फ जिनका पंजीकरण होना जरूरी था और नहीं हुआ.. अगर कोई विवाद हुआ तो क्या होगा?




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