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In village where stone pelting took place after death of terrorist Burhan Wani procession taken out against the Pahalgam attack


कश्मीर घाटी में जनता की भावनाओं में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिला है, क्योंकि कभी आतंक का गढ़ माने जाने वाले गांव भी अब पहलगाम में 26 लोगों को मारे जाने की निंदा कर रहे हैं. पूर्व में प्रतिबंधित आतंकवादी समूह हिज्बुल मुजाहिदीन के तथाकथित कमांडर बुरहान वानी और रियाज नाइकू के गढ़ या प्रभाव वाले क्षेत्र के रूप में पहचाने जाने वाले इलाकों में निवासियों ने ‘‘आतंकवाद बंद करो’’ और ‘‘निर्दोष लोगों की हत्या बंद करो’’ के नारे लगाए.

कश्मीर घाटी में 23 अप्रैल,2025 को जनता ने अभूतपूर्व तरीके से अपनी भावनाएं व्यक्त कीं और पहलगाम हमले की निंदा करते हुए व्यापक स्तर पर स्वतःस्फूर्त विरोध प्रदर्शन हुए. क्षेत्र में आतंकवाद की शुरुआत के पिछले 35 वर्षों में, घाटी ने आतंकवादी हमलों के खिलाफ जनता के गुस्से का ऐसा तत्काल और व्यापक प्रदर्शन शायद ही कभी देखा हो. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नासिर वानी और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सहित राजनीतिक नेताओं को घाटी में विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करते देखा गया.

बुरहान वानी की मौत पर हुआ था पथराव

दक्षिण कश्मीर का त्राल गांव, जहां 2016 में बुरहान वानी की मौत के विरोध में जबरदस्त पथराव देखने को मिला था, ने बुधवार को एक अलग तस्वीर पेश की, जहां निवासियों ने पहलगाम में आतंकवादी हमले के प्रति असंतोष दर्ज कराने के लिए ‘मोमबत्ती जुलूस’ निकाला. ऐतिहासिक रूप से लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों का गढ़ रहा त्राल ‘दहशतगर्दी बंद करो’ और ‘मासूमों का कत्ल-ए-आम बंद करो’ के नारों से गूंज उठा.

इसी प्रकार, दक्षिण कश्मीर में बेगपोरा के निवासियों ने पहलगाम नरसंहार के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाई और विरोध-प्रदर्शन किया. बेगपोरा रियाज नाइकू का जन्मस्थान है. प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामिया कार्यकर्ताओं की मौजूदगी के कारण 1990 के दशक की शुरुआत में ‘मिनी पाकिस्तान’ के नाम से पहचाने जाने वाले उत्तरी कश्मीर के सोपोर शहर में भी यही भावना देखने को मिली.

स्थानीय लोगों ने की पहलगाम आतंकी हमले की निंदा

स्थानीय लोग सड़कों पर उतर आए, आतंकवाद के खिलाफ नारे लगाते हुए मुख्य बाजार तक मार्च निकाला और पहलगाम हमले की कड़ी निंदा की. पीडीपी विधायक वहीद पर्रा ने लोगों के इस प्रदर्शन को ऐतिहासिक क्षण बताया और कहा कि ‘‘कश्मीरी हिंसा के इतिहास में पहली बार हम आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत, स्वतःस्फूर्त सार्वजनिक विरोध देख रहे हैं.’’



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