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महिला-पुरुष बराबर नहीं हो सकते… जानिए बांग्लादेश में क्यों आगबबूला मदरसे और मौलवी




ढाका:

बांग्लादेश के एक प्रभावशाली इस्लामी समूह के हजारों समर्थकों ने शनिवार को यहां रैली का आयोजन करके सरकार द्वारा गठित महिला संबंधी आयोग को समाप्त करने की मांग की. उनका कहना है कि महिला अधिकारों को लेकर गठित आयोग की मसौदा सिफारिशें इस्लामी आस्था के विपरीत हैं.

‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ (जो मुख्य रूप से गैर-सरकारी या ‘कौमी’ मदरसा या धार्मिक पाठशालाओं के शिक्षकों और छात्रों का एक मंच है और जिसे एक प्रभावशाली दबाव समूह माना जाता है) ने मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार द्वारा स्थापित महिला मामलों के सुधार आयोग की मसौदा सिफारिशों का विरोध करते हुए ढाका के सुहरावर्दी उद्यान में रैली का आयोजन किया.

पिछले साल अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के सत्ता से बाहर होने के बाद बांग्लादेश में धार्मिक सक्रियता बढ़ने के बीच उन्होंने मुख्य रूप से मुस्लिम महिलाओं के लिए संपत्ति से संबंधित अधिकारों सहित समान अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए प्रस्तावित सिफारिशों की निंदा की.

मंच के नायब-ए-अमीर या वरिष्ठ नेता मौलाना महफूजुल हक ने 12 सूत्री मांगों की घोषणा की, जिसमें पहली मांग मौजूदा महिला सुधार आयोग को समाप्त करना और इस्लामी विद्वानों और महिला प्रतिनिधियों वाला एक नया आयोग गठित करना था.

एक अन्य प्रभावशाली हिफाजत नेता मामुनुल हक ने महिला सुधार आयोग के सदस्यों के लिए सजा की मांग की क्योंकि उन्होंने विरासत के धार्मिक कानूनों को पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता का मुख्य कारण बताकर ‘इस देश के बहुसंख्यक लोगों की भावनाओं’ को ठेस पहुंचाई है.

महिला मदरसा के शिक्षक मोहम्मद शिहाब उद्दीन ने रैली में कहा, ‘‘पुरुष और महिला कभी समान नहीं हो सकते हैं.” उन्होंने कहा कि कुरान में महिला-पुरुषों के लिए जीवन के विशिष्ट नियमों की रूपरेखा दी गई है और ‘‘कोई रास्ता नहीं है जिससे हम इससे आगे जा सकें.”

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)



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