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MP Narayan Rane and CM devendra Fadnavis inagurated Govardhan Gaushala Konkan built on 70 acres ann


Maharashtra News: महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद नारायण राणे (Narayan Rane) ने अब समाजसेवा की दिशा में नया कदम उठाया है. सिंधुदुर्ग जिले के करंजे-साटमवाड़ी गांव में उन्होंने 70 एकड़ भूमि पर “गोवर्धन गौशाला कोंकण” की स्थापना की है, जिसका उद्घाटन CM देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के हाथों संपन्न हुआ.

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उद्घाटन समारोह के दौरान कहा, “देशी गायों का संरक्षण किए बिना प्राकृतिक खेती को गति नहीं मिल सकती.” उन्होंने यह भी कहा कि यह गौशाला न केवल एक आश्रय स्थल है, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिवर्तन का केंद्र बन सकती है. किसानों को यहां व्यवसाय-केंद्रित प्रशिक्षण मिल सकेगा, जिससे एक नई अर्थव्यवस्था का निर्माण संभव होगा.

ये गौशाला किसानों के लिए मार्गदर्शक मॉडल- एकनाथ शिंदे
इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इसे “किसानों के लिए मार्गदर्शक मॉडल” बताया. उन्होंने कहा कि यह परियोजना न केवल गोसेवा का प्रतीक है, बल्कि किसानों की समृद्धि की दिशा में एक मजबूत कदम है. उन्होंने आशा जताई कि कोंकण क्षेत्र में दूध उत्पादन में वृद्धि होकर दुग्ध व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा.

गौशाला उद्घाटन में ये भी रहे उपस्थित
यह परियोजना स्वर्गीय तातू सीताराम राणे ट्रस्ट के माध्यम से संचालित की जा रही है, जिसमें गायों के संरक्षण के साथ-साथ कृषि और पशुपालन आधारित व्यवसाय को बढ़ावा देने पर विशेष बल दिया जा रहा है. समारोह में केंद्रीय मंत्री और सांसद नारायण राणे, मत्स्य व्यवसाय व बंदरगाह विकास मंत्री नितेश राणे, विधायक दीपक केसरकर, रविंद्र चव्हाण, निलेश राणे, जिलाधिकारी अनिल पाटील, सिंधुदुर्ग शिक्षा प्रसारक मंडल की अध्यक्षा नीलम राणे सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे.

सांसद नारायण राणे ने अपने भाषण में गायों की विविध नस्लों, उनके प्राकृतिक उत्पादों जैसे दूध, गोबर और गोमूत्र के लाभों की जानकारी दी. उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य है कि किसानों की आमदनी बढ़े, बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और जिले से योग्य अधिकारी निकलें. गौसेवा के माध्यम से हम सिंधुदुर्ग को आत्मनिर्भर बना सकते हैं.”

कोंकण की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर को केंद्र में रखकर विकसित की गई यह गौशाला परियोजना न केवल एक धार्मिक पहल है, बल्कि यह ग्रामीण विकास, रोजगार सृजन और टिकाऊ खेती की दिशा में एक प्रभावशाली कदम माना जा रहा है.



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