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Brahmos Ex Chief Atul D Rane Describe Missile Strength Future After Operation Sindoor Destroyed Pakistani Military Base


Brahmos Missile: दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों में से एक ब्रह्मोस ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया. इसने 100 घंटे की लड़ाई के दौरान पाकिस्तान के मिलिट्री इन्फ्रास्ट्रक्चर पर हमला किया और उन्हें ध्वस्त कर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस मिसाइल ने ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तान की रातों की नींद हराम कर दी.

1998 में भारत और रूस ने ब्रह्मोस एयरोस्पेस के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और 2025 में मिसाइल का पहली बार युद्ध में इस्तेमाल किया गया. भारत और रूस के संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस को दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइल माना जाता है और अब यह एक ऑपरेशनल लड़ाकू हथियार में तब्दील हो चुकी है. मैक 3 तक की स्पीड और 400 किलोमीटर से अधिक दूरी पर टारगेट पर हमला करने में सक्षम ब्रह्मोस में हाई वेलोसिटी, लो रडार क्रॉस-सेक्शन और पिन प्वाइंट सटीकता है.

ब्रह्मोस एयरोस्पेस के एक्स चीफ ने बताई मिसाइल की खूबियां

ब्रह्मोस एयरोस्पेस के पूर्व महानिदेशक अतुल डी राणे इस मिसाइल को बेहद ही फुर्तीला बताया और इसे डिटेक्ट करना भी बहुत ही मुश्किल है. एनडीटीवी को दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “यह एक शानदार, हाई स्पीड वाली मिसाइल है जिसका रडार क्रॉस-सेक्शन कम है. इसकी सबसे बड़ी एडवांटेज स्पीड है. इससे ज्यादा आप और क्या मांग सकते हैं? इसकी सटीकता इतनी तीव्र है कि इसे ‘हिट्टिल’ नाम दिया गया है जो हिट और मिसाइल का मिक्चर है क्योंकि इसकी लगभग परफेक्ट एक्यूरेसी है.”

राणे ने कहा कि ब्रह्मोस मिसाइल लगभग पूरी तरह से रूसी घटकों पर निर्भर नहीं रही, अब वो विकसित होकर भारतीय हो गई है. इसमें स्वदेशी सामग्री शुरुआत में केवल 7 प्रतिशत थी जो अब बढ़कर 84 प्रतिशत हो गई है, जबकि तैनाती सिस्टम लगभग 74-75 प्रतिशत भारतीय है.

Su-30MKI के साथ ब्रह्मोस को जोड़ना एक बड़ी चुनौती थी

उन्होंने कहा कि ब्रह्मोस एक भारी क्रूज मिसाइल है, और इसे रूसी Su-30MKI फाइटर जेट्स के साथ एकीकृत करना एक चुनौती थी, इसकी इंजीनियरिंग से लेकर इसे बाहर से तैयार करने की उच्च लागत तक. यह सिर्फ मिसाइल को विमान में एकीकृत करने की बात नहीं है, बल्कि इलेक्ट्रिकल और सॉफ्टवेयर इंटरफेस की भी बात है. भारतीय वायु सेना ने इसमें योगदान दिया क्योंकि उन्हें पहले से ही Su-30 के बारे में पता था. इससे भी बड़ी चुनौती यह थी कि हम Su-30 के बारे में पूरी तरह से नहीं जानते थे. हमें विंड टनल मॉडल बनाने थे.

मिसाइल को मल्टी रोल प्लेटफॉर्म के रूप में विकसित किया जा चुका है, जिसके सरफेस वेरिएंट को नेवी शिप और आर्मी मोबाइल यूनिट्स में तैनात किए जा सकता है. वहीं, अभी हाइपरसोनिक और कॉन्पैक्ट ब्रह्मोस-एनजी पर काम चल रहा है, जिसे तेजस जैसे हल्के विमानों में लगाया जा सकता है.

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