Delhi HC order to pay 8 lakh compensation passenger who lost his leg after falling from train ann
Delhi HC News: साल 2015 में फरीदाबाद से दिल्ली की ओर एक युवक अपने रोज़मर्रा की तरह काम पर जा रहा था. उसने हमेशा की तरह जनरल डिब्बे में जगह ली, लेकिन डिब्बा पूरी तरह भीड़ से भरा हुआ था. जैसे ही ट्रेन ने रफ्तार पकड़ी, अचानक एक जोर का झटका लगा. इस झटके और भीड़ की धक्का-मुक्की के बीच वह युवक संतुलन खो बैठा और चलती ट्रेन से नीचे गिर गया.
गिरते ही उसकी दुनिया पलट गई. वह बुरी तरह घायल हुआ. डॉक्टरों ने उसकी जान तो बचा ली, लेकिन उसका बायां पैर हमेशा के लिए काटना पड़ा. शारीरिक दर्द के साथ-साथ उसे मानसिक पीड़ा भी सहनी पड़ी. लेकिन जब उसने मुआवज़े के लिए रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल का रुख किया, तो वहां से उसे और भी बड़ा झटका मिला. ट्रिब्यूनल ने 2017 में उसका दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हादसा उसकी खुद की लापरवाही से हुआ. रेलवे का दावा था कि वह युवक चलती ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रहा था और इसी कारण वह गिरा. लेकिन पीड़ित ने हार नहीं मानी. उसने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की और वर्षों तक न्याय की लड़ाई लड़ी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा ?
अब 2025 में, दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाया. दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस धर्मेश शर्मा ने कहा रिकॉर्ड में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे यह कहा जा सके कि अपीलकर्ता ट्रेन में चढ़ने या उतरने की कोशिश कर रहा था. गवाही यह दर्शाती है कि वह ट्रेन के भीतर था और अचानक झटके व भीड़भाड़ के कारण संतुलन खो बैठा और गिर गया.
दिल्ली HC ने नहीं मानी रेलवे की रिपोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट ने रेलवे द्वारा दी गई रिपोर्ट को अविश्वसनीय और विरोधाभासी बताया. रेलवे ने यह आरोप तो लगाया कि पीड़ित खुद दोषी था, लेकिन अदालत में कोई गवाह या ठोस सबूत पेश नहीं किया. वहीं, पीड़ित की ओर से पेश की गई जानकारी जैसे उसका मासिक सीजन टिकट यह दिखाने के लिए पर्याप्त थी कि वह एक नियमित यात्री था जो प्रतिदिन फरीदाबाद से दिल्ली काम पर आता-जाता था.
दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले में क्या कहा गया ?
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह एक ‘अप्रत्याशित दुर्घटना’ (untoward incident) थी और इसमें पीड़ित की कोई गलती नहीं थी. इस आधार पर कोर्ट ने रेलवे को निर्देश दिया कि वह पीड़ित को 8 लाख मुआवज़ा अदा करे. इसके साथ ही 12% वार्षिक ब्याज भी देने का आदेश दिया गया है, जो घटना की तारीख से लेकर पूरी राशि चुकाने तक लागू रहेगा.
इस फैसले का महत्व
यह फैसला सिर्फ एक व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण है जो हर दिन रेलवे की भीड़ और असुविधाओं के बीच सफर करते हैं. यह दिखाता है कि चाहे सिस्टम कितना भी बड़ा क्यों न हो, अगर आप सच के साथ खड़े रहते हैं और हिम्मत नहीं हारते, तो इंसाफ ज़रूर मिलता है भले ही देर से मिले.
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