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Devesh Chandra Thakur facing slack for saying wont work for Muslim Yadav in bihar who is Sitamarhi MP Devesh Thakur


Devesh Chandra Thakur: जनता दल (यूनाइटेड) के नवनिर्वाचित सांसद देवेश चंद्र ठाकुर की मुस्लिम और यादव पर की गई टिप्पणी के बाद बिहार की राजनीति में बवाल मच गया है. सोमवार को सीतामढ़ी पहुंचे देवेश चंद्र ठाकुर ने कहा था कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र से यादवों और मुसलमानों का अपने घर पर स्वागत करेंगे, लेकिन उनकी कोई मदद नहीं करेंगे, क्योंकि उन्होंने उनको वोट नहीं दिया. हमारे यहां आते हैं तो उनका स्वागत है. चाय पिएं, मिठाई खाएं, लेकिन मैं आपका कोई काम नहीं करूंगा. 71 वर्षीय देवेश चंद्र ठाकुर ने ये टिप्पणी उस समय की जब वे एक समारोह में सीतामढ़ी पहुंचे थे. 

बस फिर क्या था सियासी बवाल तो मचना ही था. ठाकुर की इस जातिवादी टिप्पणी पर न केवल प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय जनता दल ने बल्कि उनके सहयोगी दल भाजपा और उनकी पार्टी के बांका सांसद ने भी इसकी कड़ी आलोचना की. एक ओर राजद नेता मृत्युंजय तिवारी ने इसे जातिवादी और सामंतवादी बताया तो वहीं भाजपा के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव निखिल आनंद ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल यादवों की अनदेखी नहीं कर सकता. वहीं खुद उनकी पार्टी जद (यू) के सांसद गिरधारी यादव ने देवेश चंद्र ठाकुर से तत्काल माफी मांगने की भी मांग की.

लोकसभा चुनाव में कैसा रहा प्रदर्शन

सीतामढ़ी से ताल्लुक रखते देवेश चंद्र ठाकुर जद (यू) द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए घोषित पहले उम्मीदवार थे. इनको टिकट मिलने के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई थी. वो इसलिए क्योंकि पार्टी ने मौजूदा सांसद सुनील कुमार पिंटू को टिकट देने से इनकार कर दिया था.  देवेश चंद्र ठाकुर जद (यू) से टिकट पाकर जीतने वाले एकमात्र ऊंची जाती के नेता है, जिन्होंने  51,356 वोटों से जीत हासिल की. कहा जाता है कि इस क्षेत्र में मुस्लिमों और यादवों की आबादी अच्छी खासी है. चुनाव में देवेश चंद्र ठाकुर को 47.14 फीसदी वोट मिले थे तो वहीं आरजेडी के अर्जुन राय को 42.45 फीसदी वोट मिले थे. 2009 से लेकर अब तक सीतामढ़ी से यो तो जेडी(यू) या एनडीए सहयोगी ही जीतते आए हैं. 

जोरदार आलोचना के हो रहे शिकार

देवेश चंद्र ठाकुर की मुस्लिम-यादव की टिप्पणी को लेकर उनकी जोरदार आलोचना हो रही है. बावजूद इसके उनका कहना है कि उन्हें इसका कोई अफसोस नहीं है. उन्होंने कहा कि मैं 25 साल से राजनीति में हूं और मैंने सभी के लिए काम किया है और जो मैंने महसूस किया वही कहा. उनका कहना था कि उनको इन समुदायों से कोई समर्थन नहीं मिला. मेरे मन में उनके खिलाफ कुछ नहीं है, बस मैं उनके निजी काम नहीं कर सकता.  

राजनीति छोड़ शिपिंग कंपनी में करने लगे थे काम 

देवेश चंद्र ठाकुर के पिता अवध ठाकुर एक जाने माने वकील थे. पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए उन्होंने भी पुणे की इंडियन लॉ सोसायटी से एलएलबी की पढ़ाई की. 1990 से लेकर 1996 तक कांग्रेस पार्टी में रहे. इसके बाद उन्होंने राजनीति छोड़ने का फैसला किया और एक शिपिंग कंपनी में काम करने लगे, लेकिन राजनीति को भले ही कोई छोड़ दे पर राजनीति उस व्यक्ति को कभी नहीं छोड़ती. 

बिहार दिवस की मांग की 

2002 में वे निर्दलीय एमएलसी बनकर फिर से राजनीति में शामिल हुए. 2008 में उन्होंने जेडी(यू) का दामन थामा और फिर एक बार एमएलसी बने. बिहार के आपदा प्रबंधन मंत्री के रूप में भी काम किया. ठाकुर ने बिहार को लेकर साल 2000 में मांग की थी बिहार दिवस मनाया जाए. अंतत: 2010 में सीएम नीतीश कुमार को इसके लिए राजी कर लिया. इतना ही नहीं ठाकुर ने साल 2012 में मुंबई में बिहार दिवस का कार्यक्रम भी आयोजित किया था.

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