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Justice Yashwant Verma case bringing proposal to remove What is process wrong to say impeachment | जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने का प्रस्ताव लाने की चर्चा, जानिए


Justice Yashwant Verma: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने का प्रस्ताव संसद में लाये जाने की चर्चा है. दिल्ली हाई कोर्ट में जज रहते उनके घर में भारी मात्रा में जले हुए कैश की बरामदगी के आरोप को 3 जजों की जांच कमेटी ने सही पाया था. 8 मई को कमेटी की रिपोर्ट तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी थी. इसी को आगे की कार्रवाई का आधार बनाया जा सकता है.

जज को हटाने का आधार

हम आपको बताते हैं कि एक जज को अपने पद से हटाने के लिये संविधान में क्या प्रावधान और तरीका दिया गया है? जजों को हटाने के लिये संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के तहत की जा सकती है. इस प्रावधान के तहत एक जज को कदाचार या फिर अक्षमता के आधार पर हटाया जा सकता है. भारत के कानून मे और न ही भारत के संविधान में किसी जज को हटाने के लिये कोई और तरीका दिया गया है.

कमेटी का गठन जरूरी

जजेज इंक्वायरी एक्ट 1968 के तहत सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज को हटाने के लिये या तो लोकसभा के 100 सदस्य या फिर राज्यसभा के 50 सदस्य प्रस्ताव रख सकते हैं. यह प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष या फिर राज्यसभा के उपसभापति को भेजा जाता है. प्रस्ताव मिलने के बाद 3 सदस्यों की एक जांच कमेटी बनाई जाती है. इसमें से दो जज होते हैं. अगर प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ है तो कमेटी में दोनो सुप्रीम कोर्ट जज होंगे. अगर हाई कोर्ट जज के खिलाफ प्रस्ताव है तो कमेटी में हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस भी होंगे. इस कमेटी में तीसरा सदस्य एक जाना माना वकील होगा. 

जस्टिस वर्मा के मामले में क्या हो सकता है?

जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में खुद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कमेटी का गठन किया और कमेटी ने वर्मा पर लगे आरोपों को सही पाया. ऐसे में संसद के दोनों सदनों में रिपोर्ट पर विचार किया जा सकता है. इसके बाद जस्टिस वर्मा को भी अपनी बात कहने को मौका दिया जाएगा. जज चाहें तो खुद या फिर किसी वकील की ओर से अपना पक्ष रख सकते हैं.

पूरी प्रक्रिया एक सत्र में निपटना जरूरी

संसद में अगर जस्टिस वर्मा को हटाने का प्रस्ताव आता है तो इस बात का ध्यान रखना होगा कि पूरी प्रक्रिया संसद के एक ही सत्र में खत्म की जाए. ऐसा न होने पर यह माना जाएगा कि प्रस्ताव रद्द हो गया और अगले सत्र में पूरी प्रक्रिया दोबारा शुरु करनी होगी.

कार्रवाई के लिये कितना बहुमत चाहिए?

जब जज पर कार्रवाई करने के लिये बहस पूरी हो जाए और जज को अपनी बात रखने का मौका दे दिया जाए, उसके बाद प्रस्ताव पर वोटिंग की जाती है. इस प्रस्ताव को दोनों सदनों के में दो तिहाई बहुमत से पास करना होगा. ऐसा होने पर प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाएगा.

क्या आज तक किसी जज को हटाया गया है?

आज तक किसी जज को इस तरह से नहीं हटाया गया है. 1991 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रामास्वामी को हटाने की कोशिश की गयी थी, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार के वोटिंग में हिस्सा न लेने की वजह से उन्हें हटाया नहीं जा सका था. 2011 में कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन को हटाने का प्रस्ताव राज्यसभा से पारित हुआ था, लेकिन लोकसभा में वोटिंग से पहले उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था. 2011 में ही सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरन ने जांच कमेटी की रिपोर्ट आने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था.

प्रक्रिया को महाभियोग कहना गलत

कई बार जजों को हटाने के इस तरीके को महाभियोग कह दिया जाता है, लेकिन संविधान में इसे इम्पीचमेंट यानी महाभियोग नहीं कहा गया है. इसे रिमूवल यानी पद से हटाना कहा गया है. संविधान में महाभियोग शब्द का इस्तेमाल राष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया के लिए किया गया है. जजों के मामले में संसद से प्रस्ताव पारित होने के बाद राष्ट्रपति को भेजा जाता है. उसके बाद राष्ट्रपति जज को हटाने का आदेश जारी करते हैं.



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