Modi government announced conduct caste census in 2027 after bihar election 2025 now Congress rise question that led to heat bihar politics ann
Congress On Caste Census: ऑपरेशन सिंदूर ,सीजफायर और सर्वदलीय डेलिगेशन के बाद कांग्रेस ने अब बिहार चुनाव पर निगाहें गड़ाते हुए जातिगत जनगणना पर मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. कांग्रेस को लगता है कि, 2024 के लोकसभा चुनाव में जातिगत जनगणना और आरक्षण की सीमा बढ़ाने के मुद्दे ने 400 का सपना संजोए बीजेपी को 240 पर रोकने में अहम भूमिका निभाई. ऐसे में बिहार चुनाव के पहले अचानक मोदी सरकार ने अक्टूबर 2027 से जातिगत जनगणना कराने का ऐलान कर दिया. ऐसे में अब कांग्रेस इसे मोदी सरकार का शिगूफा बताकर सवाल खड़े कर रही है-
पहला सवाल ये कि फौरन शुरू कराने के बजाय अक्टूबर 2027 को क्यों चुना गया? क्या ये सिर्फ बिहार चुनाव में संदेश देने के लिए था? दूसरा जातिगत जनगणना का मॉडल क्या होगा सरकार ये आज तक क्यों नहीं बता पाई है? तीसरा सवाल ये कि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सब को मिलाकर तेलंगाना सरकार की तर्ज पर जातिगत जनगणना कराने का ऐलान क्यों नहीं करती सरकार? अगर ऐसा नहीं होता तो ये महज महिला आरक्षण की तरह का लॉलीपॉप माना जायेगा. चौथा सवाल ये कि जो मोदी सरकार राहुल की इस मांग का मजाक उड़ाती रही, सिर्फ चार जातियों का जिक्र करती रही, उसने अचानक बिहार चुनाव से ये घोषणा की है. ऐसे में इस ऐलान के पीछे राहुल और जनता का दबाव दिखता है, लेकिन टाइमिंग सवाल खड़े करती है.
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का सवाल
इस मुद्दे पर कांग्रेस महासचिव और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि वोट लेने के लिये कहते है कि मैं पिछड़े वर्ग से आता हूं और बाद में कहते है कि इस देश में दो ही जाति हैं अमीर और ग़रीब. राहुल गांधी जाति जनगणना की बात करते थे तो उनका उपहास उड़ाते थे. अब जब देश कहने लगा तो एलान कर दिया. राहुल गांधी ने कहा कि सिर्फ जनगणना से कुछ नहीं होगा उसका राजनैतिक सामाजिक अस्तित्व क्या है उसके हिसाब से गणना होना चाहिये. हम ये पूछ रहे है कि सरकार क्या राहुल गांधी चला रहे है या बीजेपी वाले चला रहे है. क्योंकि जो राहुल कह रहे है वही वो लोग कर रहे हैं.
बिहार की सियासत में जाति की बड़ी भूमिका
वैसे ये बात जगजाहिर है कि, बिहार की सियासत में जाति बड़ी भूमिका निभाती आई है. इसीलिए केंद्र सरकार की घोषणा के बाद कांग्रेस और राजद मिलकर बिहार सरकार के सर्वे को लेकर हमलावर हैं. जहां एक तरफ राहुल नीतिश सरकार के सर्वे पर सवाल खड़ा करते हुए तेलंगाना मॉडल को आदर्श बता रहे हैं, वहीं तेजस्वी आक्रमक हैं कि नीतीश और मोदी सरकार गम्भीर हैं तो उसी सर्वे के बाद बढ़ी आरक्षण सीमा को नौवीं सूची में क्यों नहीं डाल देते, जिससे आरक्षण की सीमा तमिलनाडु की तर्ज पर बढ़ाई जा सके. कुल मिलाकर बिहार की सियासत में चुनावी शतरंज की बिसात पर जातिगत जनगणना को बड़े मोहरे के तौर पर इस्तेमाल करने को हर पक्ष तैयार है.