PCC Chief Jitu Patwari asked six questions to CM Mohan Yadav said why children number in government private schools is decreasing ANN | MP News: पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने सीएम मोहन यादव से पूछे 6 सवाल, कहा
Jitu Patwari To CM Mohan Yadav: लोकसभा चुनाव से पहले पीसीसी चीफ जीतू पटवारी काफि एक्टिव नजर आ रहे हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से छह सवाल पूछे हें. जीतू पटवारी ने ट्वीट कर सीएम मोहन यादव से सवाल पूछे हैं. उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को लेकर सीएम के सामने ये सवाल खड़े किए हैं.
पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने अपने एक्स अकाउंट पर सवाल पूछते हुए कहा कि प्रदेश में लगातार सरकारी और निजी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम हो रही है. पटवारी ने लिखा कि सीएम डॉ. मोहन यादव स्वयं भी उच्च शिक्षा मंत्री रह चुके हैं, ऐसे में उन्हें प्रदेश की जनता के सामने आकर यह बताना चाहिए कि सरकारी और निजी स्कूलों से बच्चों की संख्या कम क्या हो रही है?
जीतू पटवारी ने पूछे ये 6 सवाल
1. मध्य प्रदेश में पिछले 10 साल में स्कूली शिक्षा पर 1.50 से 2 लाख करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, बावजूद इसके इस दौरान सरकारी स्कूलों में 39 लाख और निजी स्कूलों में 65 हजार बच्चे कम हो गए हैं.
2. स्कूल शिक्षा में 2022-23 में 27 हजार करोड़ रुपए का बजट प्रावधान था. इसमें से 15205 करोड़ खर्च हुए. 2010-11 में सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या 1 करोड़ 5 लाख थी, जिनकी संख्या 2021-22 में घटकर 66.23 लाख रह गई क्यों?
3. इस अवधि में निजी स्कूलों में 48.49 लाख बच्चे थे, जिनकी संख्या 2021-22 में घटकर 48.29 लाख रह गई, इस तरह निजी स्कूलों में 65 हजार बच्चे कम हुए, क्या सरकार मौजूदा स्थिति जनता के सामने रखेगी.
4. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 2020-21 में जहां पहली से 8वीं वाले 1.17 करोड़ बच्चे थे, ये 2021-22 में 1.15 करोड़ ही बचे. यह गिरावट भी तब है जब प्रदेश में 370 सीएम राइस स्कूल खोले जाने की प्रक्रिया शुरू हुई.
5. हालांकि उल्लेख की गई अवधि में सरकारी दावों के हिसाब से प्रदेश के 1.25 लाख स्कूलों में छात्रों की संख्या 1 करोड़ 60 लाख बताई गई, इसमें सरकारी और निजी स्कूलों के बच्चे शामिल हैं. लेकिन यह आंकड़ा सरकारी दावों की तरह ही संदिग्ध लगता है.
6. जनता को उम्मीद है कि उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में आपका अनुभव स्कूल शिक्षा को भी मिलेगा, लेकिन आंकड़े गहरी/गंभीर निराशा पैदा कर रहे हैं. यह बताने और दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि स्कूल शिक्षा समाज और भविष्य की बुनियाद होती है. यदि यही संकट में आ गई तो सरकार की उपस्थिति/उपयोगिता क्या होगी?
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