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Pahalgam Terror Attack: पहलगाम नरसंहार के सीमा-पार पाकिस्तान से कनेक्शन को लेकर भारत के विदेश मंत्रालय ने दो दर्जन से ज्यादा देशों के राजनयिकों को साउथ ब्लॉक बुलाकर ब्रीफिंग दी तो हर कोई हैरान रह गया. ऐसा इसलिए क्योंकि इन देशों के राजनयिकों में भारत के मित्र-देश रूस, अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस तो थे ही लेकिन चीन और कतर जैसे देश भी शामिल थे. संयुक्त राष्ट्र सहित सभी वैश्विक मंच पर चीन, पाकिस्तान से ऑपरेट होने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने की कोशिशों पर अड़ंगा लगाता आया था.

आखिर ये कैसे संभव हो पाया था, हर कोई हैरान था. दरअसल, इसके पीछे थी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर की कूटनीति जिसने पिछले कुछ सालों में भारत को एक सुपर पावर बनाने में तो मदद की, लेकिन पाकिस्तान को एक टेरर-स्टेट यानी आतंकी देश घोषित करने में भी कामयाब हो गए.

आतंकवादियों का समर्थन करता है पाकिस्तान

पहलगाम नरसंहार के बाद एबीपी न्यूज ने खुलासा किया कि कैसे पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद के पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी ISI से करीबी संबंध हैं. कैसे पाकिस्तान में आतंक से जुड़े स्टेट-एक्टर्स और नॉन-स्टेट एक्टर्स हाथ में हाथ डालकर भारत के खिलाफ साजिश रचते हैं. फिर चाहे मुंबई का 26/11 हमला हो या फिर उरी या पुलवामा अटैक या फिर पहलगाम नरसंहार. ऐसा नरसंहार जिसमें आतंकियों ने ISIS की तर्ज पर भारत के मासूम पर्यटकों को धर्म के आधार पर चुन-चुनकर मौत के घाट उतारा. खून के प्यासे दहशतगर्दों ने रोते-बिलखते बच्चों, पत्नी, भाई-बहन, मां और पिता के सामने 26 लोगों को पॉइंट ब्लैंक रेंज से गोली मार दी.

भारत के खिलाफ रची जा रही थी साजिश

कश्मीर में हुए पहलगाम नरसंहार ने पूरे देश सहित दुनिया को हिलाकर रख दिया. हर कोई हैरान था कि धारा 370 हटने के बाद से जिस कश्मीर में विकास का बहार बह रही थी, आतंकी बंदूक छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो रहे थे और कभी पाकिस्तान के गुणगान गाने वाली कश्मीरी आवाम में आतंकियों को लेकर जबरदस्त गुस्सा था. लेकिन पहलगाम हमले से कुछ दिनों पहले से पाकिस्तान और पाकिस्तान के गैर-कानूनी कब्जे वाली कश्मीर यानी पीओके से ऐसे जानकारी सामने आने लगी थी, जिससे ऐसा लगता था कि आतंकवाद का एपीसेंटर माने जाने वाला पाकिस्तान, भारत के खिलाफ कोई बड़ी साजिश रच रहा है.

एबीपी न्यूज ने सबसे पहले दुनिया को दिखाया था कि कैसे पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर इस्लामाबाद में भारत-विरोधी तकरीरें दे रहा है. कैसे कश्मीर और हिंदुओं को लेकर आग उगल रहा है. PoK के रावलकोट में लश्कर के आतंकी कैसे कश्मीर में फिर से जिहाद और गला काटने की धमकी दे रहे थे.

दरअसल, धारा 370 के हटने के बाद से जैश और लश्कर की कमर टूट चुकी थी. दूसरी तरफ पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को एक टेरर-स्टेट के तौर पर एक्सपोज करना शुरू कर दिया था. इसका नतीजा ये हुआ कि अमेरिका ने 26/11 हमले के मास्टरमाइंड तहव्वुर हुसैन राणा को भारत को प्रत्यपर्ण कर दिया. वो अमेरिका, जो पिछले 17 सालों से तहव्वुर को भारत भेजने के लिए तैयार नहीं था, उसके खिलाफ NIA ने ऐसे-ऐसे सबूत दिए जिससे साफ हो गया कि 26/11 का मुंबई हमला, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI और पाकिस्तानी सेना की मदद से जैश और लश्कर ने अंजाम दिया था.

भारत ने ट्रंप प्रशासन को भरोसा करने के लिए किया मजबूर

भारत ने ट्रंप प्रशासन को ये मानने पर मजबूर किया कि अमेरिका पर हुए सबसे बड़े आतंकी हमले यानी 9/11 का मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन अगर पाकिस्तान में छिपा हुआ था तो वो कोई महज इत्तेफाक नहीं था. पाकिस्तानी सेना और ISI के सेफ हाउस में अलकायदा के चीफ ने शरण ले रखी थी. पिछले महीने अगर पाकिस्तान ने अमेरिकी सैनिकों के हत्यारे शर्रीफुल्लाह को FBI को सौंपा तो कोई दरियादिली नहीं की, बल्कि पाकिस्तान अपने जाल में खुद फंस चुका था. साल 2021 में जब अमेरिका सेना अफगानिस्तान छोड़कर जा रही थी, तब शर्रीफुल्लाह ने ही काबुल एयरपोर्ट के बाहर जबरदस्त बम धमाका कर 14 अमेरिकी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. हमला करने के बाद शर्रीफुल्लाह पाकिस्तान में छिपा हुआ था.

पाकिस्तान ने अमेरिका की गुड बुक में आने के लिए शर्रीफुल्लाह को FBI को सौंपा, लेकिन पासा पलट गया. क्योंकि ओसामा से लेकर उमर शेख (विदेश नागरिक डेनियल पर्ल का अपहरणकर्ता) और हक्कानी नेटवर्क से लेकर शर्रीफुल्लाह और हाफिज सईद सहित मसूद अजहर, आखिर सब पाकिस्तान में ही क्यों मिलते हैं.

 आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका ने दिया भारत को समर्थन

पहलगाम नरसंहार के तुरंत बाद जिन राष्ट्राध्यक्षों ने सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना शोक संदेश भेजा, उनमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ही थे. ट्रंप ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के साथ खड़े होने का भरोसा दिया. ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी और भारत को इस लड़ाई में हरसंभव मदद का भरोसा दिया. यहां तक की ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स को भी पहलगाम नरसंहार में शामिल आतंकियों को उग्रवादी कहने पर कड़ा ऐतराज जताया.

अमेरिका की तरफ से पाकिस्तान को दो टूक

पाकिस्तान के खिलाफ पीएम मोदी के नेतृत्व में जब कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) ने जब सिंधु नदी समझौते को रद्द किया तो दिल्ली में यूएस एंबेसी ने पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ अपने रुख को एकदम साफ कर दिया. सिंधु नदी समझौते को रद्द करने के लिए पाकिस्तान ने भारत के फैसले को युद्ध करार दिया था. लेकिन यूएस एंबेसी ने दो टूक कह दिया कि भारत और पाकिस्तान ने 1960 में सिंधु संधि को ऐसे समय में किया था जब दोनों देशों के अच्छे संबंध थे. लेकिन पाकिस्तानी सरकार ने भारत के खिलाफ आतंकवाद को प्रायोजित कर इस मित्रतापूर्ण भावना को खराब कर दिया है. इसलिए अमेरिका ऐसे किसी देश के साथ सहयोग नहीं करेगा जो भारत के मासूम नागरिकों को मारने का जिम्मेदार है.

इजरायल के साथ हर वक्त भारत ने निभाई दोस्ती

अमेरिका की तरह ही इजरायल भी वो देश है जो हर मुश्किल वक्त में भारत के साथ खड़ा दिखाई पड़ता है. ऐसा इसलिए क्योंकि 7 अक्टूबर, 2023 को जब कट्टर आतंकी संगठन हमास ने इजरायल के मासूम नागरिकों और विदेशी पर्यटकों का नरसंहार किया था तब पीएम नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले आतंकी हमले की भर्त्सना की थी. यहां तक की अमेरिका ने भी तब तक हमास के खिलाफ बोलने की कोशिश नहीं की थी. पीएम मोदी ने साफ कर दिया कि भारत भले ही इजरायल और फिलीस्तीन के बीच टू नेशन थ्योरी का समर्थन करता है लेकिन हमास की आतंकी कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. यही नहीं, जब 7 अक्टूबर के हमले से गुस्साई IDF ने पूरे गाजा को जमींदोज कर दिया और पूरी दुनिया इजरायल के खिलाफ खड़ी थी, तब भी भारत इजरायल के साथ खड़ा हुआ था. भारत ने गाजा में मासूम फिलिस्तीनियों के लिए खाने-पीने और राहत-बचाव का सामान तो भेजा, लेकिन इजरायल की जवाबी कार्रवाई पर उंगली भी नहीं उठाई.

बेंजामिन नेतन्याहू ने पीएम मोदी को दिया समर्थन

भारत और इजरायल के मजबूत संबंधों का ही नतीजा था कि पहलगाम हमले के बाद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने खुद पीएम मोदी को फोन कर अपनी संवेदना प्रकट की. नेतन्याहू ने पहलगाम हमले के लिए सीधे तौर से इस्लामिक आतंकवाद को जिम्मेदार ठहराया. नेतन्याहू ने मोदी को भरोसा दिया कि आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई में इजरायल और भारत कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है.

PoK में नजर आई हमास के कमांडरों की मौजूदगी

उल्लेखनीय है कि पहलगाम हमले से ठीक पहले हमास के कमांडरों की मौजूदगी PoK में थी. जैश और लश्कर के निमंत्रण पर हमास के नेता लगातार पाकिस्तान पहुंच रहे थे. पहली बार हमास के नेताओं को 5 फरवरी को पीओके के रावलकोट में देखा गया. इसके बाद 18 अप्रैल को हमास के कमांडरों को जैश-ए-मोहम्मद के बहावलपुर स्थित हेडक्वार्टर में देखा गया. पहलगाम हमले में हमास की तर्ज पर खून-खराबे के निशान दिखाई पड़ते हैं. ऐसे में भारत को इजरायल का साथ बेहद जरूरी है.

हाल के सालों में भारत के अमेरिका के करीब जाने से पाकिस्तान ने रूस के करीब जाने की कोशिश की. चीन ने भी पाकिस्तान का हाथ पकड़कर रूस से संबंध बनाने में मदद की. नतीजा ये हुआ कि साल 2016 में रूस और चीन ने पाकिस्तान को शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) में शामिल कर लिया. लेकिन पुलवामा हमले के बाद जब SCO की काउंटर टेररिज्म एक्सरसाइज पाकिस्तान में होने जा रही थी, तब भारत ने पूरी तरह इस युद्धाभ्यास का बॉयकॉट कर दिया. ऐसे में रूस को भी समझ आया कि टेरर-स्टेट पाकिस्तान जाकर आतंक-विरोधी एक्सरसाइज का कोई औचित्य नहीं है. आतंकवाद के खिलाफ भारत के कड़े रुख का रूस ने भी समर्थन किया.

रूस भी भारत की तरह ही कट्टर इस्लामिक आतंकवाद का शिकार रहा है. यही वजह है कि पहलगाम हमले के बाद सबसे पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ही अपनी संवेदनाएं पीएम मोदी को भेजी थी. पुतिन भी भली-भांति जानते हैं कि भारत और पीएम मोदी ही दुनिया के उन गिने-चुने देशों में हैं, जो तब उनके साथ खड़ा था जब 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण किया था. पीएम मोदी ने भले ही पुतिन के मुंह पर बोल दिया हो कि ये युग युद्ध का नहीं है लेकिन खुलकर रूस का विरोध नहीं किया था. भारत ने रूस-यूक्रेन विवाद को बातचीत और डिप्लोमेसी के जरिए सुलझाने का जरूर आह्वान किया.

पाकिस्तान की असलियत दिखान में विदेश मंत्री की अहम भूमिका

दुनिया के तीन सबसे शक्तिशाली देशों के साथ ही नहीं बल्कि पश्चिमी देशों में घूम-घूमकर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान को नंगा करने की अहम जिम्मेदारी निभाई है. भारत जानता था कि भले ही कोल्ड वॉर खत्म होने के बाद जियो-पॉलिटिक्स में इंग्लैंड, जर्मनी और फ्रांस जैसे पश्चिमी देशों की अहमियत कम जरूर हुई है, लेकिन खत्म नहीं हुई है. इंग्लैंड और फ्रांस अभी भी पी-5 यानी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अहम सदस्य हैं, जो वैश्विक मामलों का रुख मोड़ने का माद्दा रखते हैं. ऐसे में म्युनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस हो या फिर यूरोप के बड़े थिंक-टैंक, जयशंकर ने मजबूती के साथ पाकिस्तान को एक नाकाम और टेरर-स्टेट घोषित कर दिया.

कट्टर इस्लामिक विचारधारा से जूझ रहे यूरोप को समझ आ गया कि वाकई वैश्विक आतंकवाद का एपीसेंटर कोई देश है तो वो पाकिस्तान ही है. हाल ही में यूरोपीय देश स्पेन में पकड़े गए पाकिस्तानी मूल के आतंकियों की धरपकड़ से ये बिल्कुल साफ हो गया था. ब्रिटेन में कम उम्र की लड़कियों को अपना शिकार बनाने वाले ग्रूमिंग गैंग में अधिकतर विदेशी भी पाकिस्तान मूल के ही थे.

इस्लामिक देश होने के कारण खाड़ी देशों के दम पर कूदने वाले पाकिस्तान की नली तोड़ने का काम भी पिछले एक दशक में मोदी ने किया है. कभी इस्लामिक देशों की संस्था OIC में कश्मीर को लेकर दहाड़े मारने वाले पाकिस्तान को अब UAE, सऊदी अरब और ईरान इत्यादि देशों से भीख मिलने भी बंद हो गई है. OIC ने कश्मीर मुद्दे को अपने चार्टर में रखना ही बंद कर दिया है. क्योंकि खाड़ी देश भी समझ चुके हैं कि कश्मीर में इस्लामिक कम और पाकिस्तान की नीयत ज्यादा खराब है. खास बात ये है कि 22 अप्रैल को पहलगाम में पाकिस्तान के आतंकी नरसंहार को अंजाम दे रहे थे, उस वक्त पीएम मोदी सऊदी अरब में ही मौजूद थे. आनन-फानन में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मिलकर अपनी यात्रा को बीच में छोड़कर रात में ही पीएम मोदी स्वदेश लौट आए.

चीन के सामने एक्सपोज हुआ पाकिस्तान

गुरुवार को जब भारत के विदेश सचिव ने राजधानी दिल्ली में तैनात दुनियाभर के राजनयिकों को पहलगाम हमले को लेकर ब्रीफिंग के लिए आमंत्रित किया, तो उसमें चीन के डिप्लोमेट भी मौजूद थे. चीन के डिप्लोमेट का साउथ ब्लॉक पहुंचना बताता है कि चीन के समक्ष भी पाकिस्तान एक्सपोज हो चुका है. पहलगाम हमले के बाद दिल्ली में चीन के राजदूत शू फीहोंग ने हर तरह के आतंकवाद का विरोध करने का कड़ा संदेश दिया.

पाकिस्तान और तुर्की की चेहरे की हंसी उड़ने वाली है

पाकिस्तान के आतंकवाद को जो देश आज समर्थन करता है तो वो टर्की है. गौरतलब है कि जिस दिन पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, उस दिन भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन हंसकर अंकारा में गले मिल रहे थे. लेकिन ये हंसी ज्यादा दिन तक नहीं रह पाएगी. क्योंकि, भारत ने आतंकवाद पर अंतिम और निर्णायक प्रहार की तैयारी कर ली है. लेकिन पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, जयशंकर और NSA अजीत डोवल के तेवर बता रहे हैं कि भारत के दुश्मनों के चेहरे पर हंसी ज्यादा दिन तक नहीं रह पाएगी.



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