Supreme Court vs central government on jagdeep dhankhar comment article 142 ANN
Jagdeep Dhankhar On SC: सरकार और संसद के कामकाज में सुप्रीम कोर्ट के दखल को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का बयान चर्चा और बहस का मुद्दा बना हुआ है. इस लेख में हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि धनखड़ ने बयान क्यों दिया? उस बयान में उन्होंने क्या कहा? इस पूरे मामले के कानूनी और संवैधानिक आयाम क्या है?
मामला कहां से शुरू हुआ?
8 अप्रैल को दिए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल की तरफ से रोके गए 10 विधेयकों को अपनी तरफ से मंजूरी दे दी. इस फैसले में कोर्ट ने विधेयकों पर फैसला लेने को लेकर राज्यपाल के लिए समय सीमा तय की. जस्टिस जेबी पारडीवाला और आर महादेवन की बेंच ने इससे भी आगे बढ़ते हुए यह तक कह दिया कि राज्यपाल कोई विधेयक विचार के लिए राष्ट्रपति के पास भेजें तो राष्ट्रपति को उस पर 3 महीने के भीतर फैसला लेना चाहिए. अगर राष्ट्रपति ऐसा नहीं करते तो राज्य सरकार कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है. फैसले का यही हिस्सा इस समय विवादों में है.
‘SC के पास मिसाइल’
राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए टाइमलाइन तय करने वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत मिली विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया है. यह अनुच्छेद कोर्ट को संपूर्ण न्याय के लिए उचित आदेश देने की शक्ति देता है. इसी पर उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा है कि अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल एक मिसाइल की तरह सुप्रीम कोर्ट कर रहा है. उन्होंने अपने बयान में यह तक कह दिया कि न्यायपालिका को पहले खुद की तरफ देखना चाहिए. हाई कोर्ट के जज के घर पर कैश बरामद होने के मामले में अब तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है.
राष्ट्रपति के लिए संविधान में कोई समय सीमा नहीं
संविधान के अनुच्छेद 201 में यह लिखा गया है कि अगर राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजते हैं तो राष्ट्रपति उस विधेयक को मंजूर कर सकते हैं या मंजूरी देने से मना कर सकते हैं. इस अनुच्छेद में राष्ट्रपति की तरफ से फैसला लिए जाने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अब यह कह दिया गया है कि राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर विधेयक पर फैसला लेना चाहिए.
‘अनुच्छेद 145 भी देखिए’
उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने इसी पर निशाना साधते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है. धनखड़ ने 2 जजों की तरफ से फैसला लेने पर भी सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान से जुड़ी व्याख्या करने का अधिकार 5 जजों की संविधान पीठ को है. धनखड़ ने यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में 34 जज हैं. उसके हिसाब से 5 जजों की संख्या बहुत कम है. संविधान से जुड़े किसी पहलू की व्याख्या करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों के बहुमत का फैसला होना चाहिए. कुछ जजों का बैठकर संसद के काम में दखल देना सही नहीं.
कानूनविदों का क्या कहना है?
ज्यादातर कानूनविद इस बात पर सहमत हैं कि अनुच्छेद 142 में सुप्रीम कोर्ट को मिली विशेष शक्ति की सीमाएं हैं. अगर कोर्ट को ऐसा लगता था कि राज्यपाल या राष्ट्रपति की तरफ से विधेयकों पर समय से फैसला नहीं लेना गलत है. इस देरी के चलते राज्य सरकारों का कामकाज प्रभावित होता है तो कोर्ट संविधान में व्यवस्था बनाने की सलाह सरकार को दे सकता था. अनुच्छेद 361 के तहत राष्ट्रपति को किसी भी अदालती कार्रवाई से छूट हासिल है. कोर्ट की तरफ से राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय कर देना सही नहीं.
कपिल सिब्बल की अलग राय
हालांकि, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने एबीपी न्यूज से बात करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कोई कमी नहीं है. अगर कार्यपालिका अपना संवैधानिक कर्तव्य नहीं निभाएगी तो न्यायपालिका को दखल देना होगा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को राष्ट्रपति से जोड़कर नहीं देखना चाहिए. राष्ट्रपति केंद्रीय कैबिनेट की सलाह और सहायता से ही काम करते हैं. ऐसे में यह निर्देश केंद्रीय कैबिनेट के लिए है, राष्ट्रपति के लिए नहीं.
सिब्बल ने कहा कि अगर सरकार को इस फैसले से कोई दिक्कत है तो उसे पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए. सरकार संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत प्रेसिडेंशियल रेफरेंस भेज कर सुप्रीम कोर्ट से इस पर राय भी मांग सकती है. ऐसे में एक बड़ी बेंच विचार करके यह तय करेगी कि फैसला सही है या नहीं.