News

Waqf Amendment Act 2025 Supreme Court reserves verdict CJI BR Gavai Justice AG Masih Bench Arguments completed ann | वक्फ संशोधन एक्ट मामले में अंतरिम आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा, जानिए


वक्फ संशोधन एक्ट मामले में अंतरिम राहत के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है. चीफ जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई (CJI BR Gavai) और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने लगातार 3 दिन सुनवाई की. कोर्ट ने कानून पर रोक की मांग कर रहे याचिकाकर्ताओं से कहा कि संसद से बने कानून को अंतिम फैसला होने तक संवैधानिक माना जाता है. उसके प्रावधानों पर रोक लगाने के लिए बहुत मजबूत आधार की जरूरत पड़ेगी.

सुनवाई के पहले दिन याचिकाकर्ता पक्ष की तरफ से 5 वरिष्ठ वकीलों ने जिरह की थी. दूसरे और तीसरे दिन केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों ने जवाब दिया. इसके बाद एक बार फिर लगभग 2 घंटा याचिकाकर्ता पक्ष ने अपनी बातें रखीं. याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी, हुजैफा अहमदी और सी यू सिंह ने बहस की. केंद्र सरकार की तरफ से मुख्य रूप से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा. वरिष्ठ वकीलों रंजीत कुमार, राकेश द्विवेदी, मनिंदर सिंह और गोपाल शंकरनारायण ने उनका समर्थन में संक्षिप्त दलीलें रखीं.

याचिकाकर्ता पक्ष ने वक्फ बाय यूजर के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य बनाने, सरकार से वक्फ बोर्ड के संपत्ति विवाद में फैसला सरकार के हाथों में होने, वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों को सदस्य बनाने, प्राचीन स्मारकों में धार्मिक गतिविधि में समस्या की आशंका, वक्फ करने के लिए 5 साल तक मुस्लिम होने की शर्त और आदिवासी जमीन पर वक्फ बोर्ड को दावे से रोकने जैसी बातों का विरोध किया. इन्हें मुसलमानों से भेदभाव और धार्मिक मामलों में दखल बताया.

दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने संसद की तरफ से पूरी प्रक्रिया के पालन के बाद कानून बनाने का हवाला दिया. केंद्र ने कहा कि अंतिम सुनवाई से पहले कानून की धाराओं पर रोक लगाना सही नहीं होगा. जो लोग यहां याचिका लेकर आए हैं, वह व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नहीं हैं. वह पूरे मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि नहीं हैं. कानून सार्वजनिक हित मे बनाया गया है. पुराने वक्फ कानून की विसंगतियों को दूर किया गया है.

सरकार ने कहा कि वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. इसे मौलिक अधिकारों जैसा दर्जा नहीं दिया जा सकता. वक्फ बाय यूजर के रजिस्ट्रेशन को 1923 के कानून में भी जरूरी रखा गया था. 102 साल से जिन लोगों ने रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया, वही अब भी विरोध कर रहे हैं. अगर संपत्ति उनकी नहीं है तो सामाजिक हित में उसका इस्तेमाल होना चाहिए.

पहले वक्फ सिर्फ मुस्लिम ही कर सकता था. लेकिन वक्फ कानून 2013 में गैर मुस्लिमों की संपत्ति के भी वक्फ होने का प्रावधान रख दिया गया था. इसे सुधारते हुए वक्फ करने के लिए कम से कम 5 साल मुस्लिम होने की शर्त रखी गई है. आदिवासियों की ज़मीन को संविधान भी संरक्षण देता है. वही इस कानून में भी किया गया है. वक्फ बोर्ड में सीमित सदस्य गैर मुस्लिम होंगे, जिनकी भूमिका भी बहुत सीमित होगी. प्राचीन स्मारकों में धार्मिक गतिविधियों पर नए वक्फ कानून से कोई अंतर नहीं आएगा.

पूरे गांव पर वक्फ बोर्ड का दावा!
सुनवाई के अंत में तमिलनाडु के एक गांव की बात एक वकील ने कोर्ट में रखी. उन्होंने बताया कि गांव में 1500 साल पुराना मंदिर है. सदियों से वहां हिंदू रहते आए हैं. लेकिन पूरे गांव की ज़मीन पर वक्फ बोर्ड दावा कर रहा है. ऐसा देश के दूसरे हिस्सों में भी हो चुका है. नया कानून ऐसी स्थितियों के लिए कानूनी समाधान देता है. इसलिए, कोर्ट कानून पर रोक न लगाए.

 

यह भी पढ़ें:-
Waqf Amendment Act: वक्फ संशोधन कानून मामले में बहस पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *